Saturday, January 4, 2014

आम आदमी पार्टी (आप) : चित भी मेरी पट भी मेरी


अरविंद केजरीवाल अब दिल्ली के मुख्यमंत्री बन चुके है ! विश्वास मत जीतने से पहले अपनी सादगी की वजह से चर्चा मे रह चुके केजरीवाल ने पहले तो एक आलिशान मकान अपने निवासस्थान के रूप मे  पसंद किया था ऐसी खबरें थी । लेकिन इन खबरों पर बवाल उठने के बाद उन्होंने इस बडे घर को वापस कर दिया ।  हम सब जानते है कि केजरीवाल का यहांतक का सफर एक आंदोलन से शुरू हुआ जिसे अण्णाजी के आंदोलन के नाम से जाना जाता है !

जब अण्णाजी का आंदोलन चल रहा था तो उसके समर्थन मे जो लोग मुहीम चला रहे थे उन्हें मै अच्छी तरह जानता था । ये लोग तो भाजपा और संघपरिवार के समर्थक लोग थे । अण्णाजी के आंदोलन को सोशल मेडीया पर इन्ही लोगों ने हवा दी थी । अगर आप खुद के मेल बॉक्स खोल कर देखें,  तो  ये बात सिद्ध हो जायेगी । रामलीला पर कानून बनाने के लिये सरकार को घिरने के लिये, या यूं कहिये कि, ब्लॅकमेल करने के लिये उपोषण का हथियार इस्तेमाल करने की जरूरत थी । इस्को तो  सिर्फ अण्णाजी चला सकते थे । अण्णा माहीर थे इस खेल मे । इसलि‌ए एक रात मे अण्णाजी को मसीहा बना दिया गया ।

इस आंदोलन के पहले  अण्णाजी भी महाराष्ट्र मे बिल्कुल अकेले पड गये थे । महाराष्ट्र के बाहर उन्हें शायद ही कोई जानता था । महाराष्ट्र मे उन्होंने ११ बार अनशन किया था जिसमे ९ बार उनकी मांगे मंजूर की गयी थी । मंत्रीयों को इस्तिफा देना पडा था और नये कानून भी बन गये थे ! ये सब इलेक्ट्रॉनिक मेडीया जब नही था तब कि बात है । लेकिन जब भाजपा का शासन महाराष्ट्र मे स्थापित हु‌आ तो उसका रिमोट कंट्रोल जिनके हाथ मे था उन्होंने अण्णा को नौटंकी बताया । तेढे मुंह वाला गांधी इन शब्दों मे उनका जिक्र किया गया । 

अब वही भाजपा के समर्थक लोग इस बार अण्णाजी के मसीहा होने का ईमेल फॉर्वड कर रहे थे । अण्णाजी और केजरीवाल ने एक साथ आंदोलन मे हिस्सा लिया । सरकार को झुकाया और सरकारी बिल को जोकपाल भी कह डाला । लेकिन.....  अब केजरीवाल कहने लगे कि हमे व्यवस्था मे उतरना होगा । जब यह बात उन्होंने कही तो कोअर कमिटी की मिटींग हुई जिसके बारे मे एक चुप्पी सी है ।  मीटिंग के बाद अण्णाजी नाराज हुए थे और उन्होंने केजरीवाल से सभी रिश्तें तोड दिये । यह अब इतिहास बन गया है ।

समय समय की बात है । पिछले महीने जब लोकपाल बिल संसद मे पारित हो रहा था, तब अण्णा और केजरीवाल के अलग अलग बयाण आ रहे थे । अण्णा कह रहे थे बिल अच्छा है, तो केजरीवाल कह रहे थे कि ये तो जोकपाल है । जब अण्णा रामलीला पे केजरीवाल के साथ थे तो इसी बिल पर समझौता करने के लिये तैयार नही थे और बिल को जोकपाल बता रहे थे । आज जब अण्णा ने बिल का स्वागत किया तो केजरीवाल ने कहा कि को‌ई अण्णाजी के कान फूंक रहा है । अण्णाजी के कान फूंके जा सकते है, अण्णा हल्के कान के है यह साक्षात्कार केजरीवाल को कैसे हु‌आ ? क्या  अण्णाजी का इस्तमाल किया जा सकता है ,  यही केजरीवाल कहना चाहते थे ?

अण्णाजी के बदलते हु‌ए रंग और तेवर देखकर हमे तो कुछ समझ नही आ रहा । ना ही राजनीती को गंदा कहनेवाले केजरीवाल की बाते समझ मे आ रही है । समर्थन नही लेंगे, ले लिया । सरकार नही बनायेंगे, बना दी । सरकारी मकान नही लेंगे, ले लिया !

तो बात है उन ईमेल फॊर्वर्ड वालों कि.. ये लोग अब केजरीवाल के खिलाफ क्यूं प्रचार कर रहे है ? अब ये लोग आप के खिलाफ क्यूं प्रचार कर रहे है ? हमे फिरसे इतिहास मे झांकना होगा ।

अडवाणीजी ने १९९९ और २००४ के चुनाव के ठीक पहले दो बार एक अहम बात अपने चिंतन मे कही थी ।  इस देश मे द्विपक्षीय लोकशाही होनी चाहीये । जिस तरह की डेमोक्रसी यू‌एस‌ए मे है, भारत मे होनी चाहीये । उन्होंने ये भी कहा कि भारत को अध्यक्षीय लोकशाही कि जरूरत है । यह एक स्वतंत्र डिबेट का मामला है । लेकिन इसी चिंतन के दौरान उन्होंने यह तक कह डाला कि कॉंग्रेस और भाजपा एक दूसरे के लिये परस्परविरोधी किंतु पूरक दल है । क्या मतलब है इसका ? विरोधी है किंतु एक दूसरे के उपयोगी दल कैसे हो सकते  है ?

अडवाणीजी ने एक ऐसी बात कही जो इस देश के राजनीती को जाननेवालें तुरंत समझ गये । दर असल कॉंग्रेस और भाजपा दोनों भी ब्राह्मणवादी विचारों के दल है । लेकिन कॉंग्रेस ने अपना रूप सेक्युलर रखा है इसलिये लोग कॉंग्रेस के साथ हो गये । बडी ही आसानी से ब्राह्मणों का राज हो गया । लेकिन कॉंग्रेस ने आजादी के बाद टाटा, बिडला,मित्तल, जिंदाल, सिंघानिया, मेहता, बजाज इन्ही लोगों के लिये काम किया । ऐसा नही है कि बाकियों के लिये कुछ नही किया, थोडा बहुत जरूर किया । लेकिन जो थोडा किया उसका प्रचार जोर शोर से किया, और जो जोर शोर से किया उसका प्रचार कभी नही किया । हालांकि जिसका प्रचार नही किया जाता वह उसका असली अजेण्डा होता है । लेकिन यह अजेण्डा कभी जाहीर नही किया जाता था । तो यह बात छुपाने का क्या मतलब हो सकता है ?

इस बात का सीधा मतलब है कि जो असली अजेण्डा है, वह कॉंग्रेस के वोटरों के पक्ष मे नही है । इसलिये यह अजेण्डा खुले आम कहने की बात नही थी । वही दूसरी और जिसका प्रचार किया गया वह उसका नकाब था ।   प्रचार किस बात का किया जा रहा था? दलित को आरक्षण, मुस्लीम का हिंदुत्ववादीयों से रक्षण ।

ये तो बुनियादी चीजे है । क्या इनका प्रचार करने कि  क्या जरूरत है?

क्यूं कि, इनका प्रचार करनेसे दूसरे जो ओबीसी के लोग थे उन्हे हिंदुत्व के नाम पर जनसंघ संघटीत कर सकता था । उनकी बढती संख्या दलित, मुस्लीम और अन्य समूहों के चिंता का विषय होता था । इस चिंता का समाधान सिर्फ कॉंग्रेस है यह एक भ्रम कॉंग्रेसद्वारा प्रचारीत किया गया, वही दूसरी ओर कॉंग्रेस अल्पसंख्यकों और नीचली जातीयों का ही काम कर रही है यह प्रचार करके उन्हें हिंदू बनाने का काम हिंदुत्ववादी करते रहे । जब हिंदुत्ववादी सत्ता मे आये, तो उन्होंने प्रचार जोर शोर से राममंदीर का किय़ा, किंतु काम कुछ नही किया । उन्होंन भी जिंदाल, मित्तल, टाटा, बिडला, मेहता, अंबानी, थडानी इन्हींका काम किया जिसका प्रचार बिल्कुल ही नही किया । जिसबात का प्रचार नही किया जाता वह असली अजेण्डा होता है, ये बात अगर सच है तो कॉंग्रेस का भी अजेण्डा यही रहा है । अगर अजेण्डा एकही है तो कॉंग्रेस और भाजपा अलग कैसे ?

जब कॉंग्रेस की ए धोखादडी लोगों कि समझ मे आयी तो प्रादेशिक एवं धार्मिक ताकतों का उदय हु‌आ जो कॉंग्रेस से किनारा कर प्रवाह मे आना चाहती थी । उन्हे अहसास हु‌आ कि सत्ता मे हमारी भागीदारीही नही है । इसीलिये मुस्लीम संगठन, दलित संगठन, ओबीसी संगठन कॉंग्रेस से अलग होकर काम करने लगे । बिहार मे लालू, उप्र मे सपा-बसपा, महाराष्ट्र मे शरद पवार, हरियाणा मे लोकदल इन पार्टीयों का उदय इसी वजह से हु‌आ जिसके चलते केंद्र मे अस्थिरता पैदा हु‌ई । अस्थिरता के चलते केंद्र की सरकार मजबूर हो गयी । यह तो मुस्लीम, दलित, ओबीसी गुटों के लिये अच्छी सिचु‌एशन थी । लेकिन फिर कॉंग्रेस ने सेक्युलर कार्ड खेला और बीजेपी ने हिंदुत्व का । दंगे हु‌ए, लोग मारे गये मस्जीद गिरायी गयी, बम धमाके हु‌ए जिसके चलते सामाजिक ध्रुवीकरण तेज हो गया । यह ध्रुवीकरण हिंदू और मुस्लीम के नाम पर हु‌आ जो ये दो पक्ष चाहते थे । अब केंद्र की सरकार चलाना सेक्युलर मजबुरी हो गयी । हमारा साथ नही दिया तो भाजपा आ जायेगी ये हौव्वा बनाया गया ।

इस घटना क्रम को देखा जाये तो कॉंग्रेस और भाजपा ये ब्राह्मणवादीयों की ए और बी टीम रही है । १९९१ के बाद देश मे हालात बदले । प्रायव्हेटायझेशन के बाद सामाजिक समीकरणों मे बदलाव हु‌ए । दुनिया एक ग्लोबल व्हिलेज बन गयी, जिसके चलते एक नयी जनरेशन जो भारतमे अब युवा के रूप मे उभरी थी उनकी सोच ग्लोबल बन चुकी थी । उनको ये दंगे कम्युनल पॉलिटिक्स बेवकुफी लगने लगा । जो दिलसे तो भाजपा या संघ के साथ थे लेकिन कम्युनल नही थे उन्हे अब नये पर्याय चाहीये थे । ग्लोबललायझेशन से अर्बनायझेशन हो गया, जिनकी प्राथमिकता अलग थी जो कॉंग्रेस के ट्रॅडीशनल पॉलिटीक्स से अलग थी । सच पूछीये तो सोनिया गांधी जैसे विदेशी महीला का हाथ मे कॉंग्रेस की डोर होनेसे ब्राह्मणवादीयों को कॉंग्रेस अपनी ए टीम नही लग रही थी । इसी लिये एक ऐसी पार्टी की उन्हे जरूरत पड रही थी जिसकी सोच नयी हो, लेकिन भाजपा की तरह हिंदुत्व की बात न करती हो ।  जनलोकपाल आंदोलन के जरीये पहले अण्णाजी के अनशन का फायदा उठाते हुए केजरीवाल को लॉंच किया गया । जब तक यह पार्टी बाल्यावस्था मे थी तो संघ स्वयंसेवकों ने उसे मदद की । अब पार्टी खडी हो गयी  तो अण्णाजी का भी काम हो गया , अब अण्णाजी को भी बाय बाय कहा गया !  अब संघ व्यवस्थापन ने केजरीवाल को ये नया संगठन खुद के बल पर चलाने का काम दिया जो संघ के रह चुके केजरीवाल ने बाखुबी निभाया । इअलिये जिन लोगोंने ईमेल फॉर्वर्ड और अन्य तरह से शुरू मे इस आंदोलन को मदद की, अब वह अपने रेग्युलर काम मे  याने मोदी के प्रचार मे जुट गये ! अब मोदी पर भी केजरीवाल का चेक बना रहेगा ! पहले की तरह मोदी अब भाजपा में डिक्टेटर नही रह सकते थे । 

अब इसके बाद कॉंग्रेस बनाम भाजपा यह खेल खेलने की को‌ई जरूरत नही रही । अब जो खेल होगा वह आप बनाम भाजपा होगा । अब ए टीम बदल गयी है । आप अगर ना भी जीते  तो भी भाजपा का फायदा है । क्युं कि अब पहले के आप के समर्थक अन कह रहे है कि आप कॉंग्रेस की ए टीम है और बीजेपी की दुश्मन है, इससे  सेक्युलर वोटों मे सेंध लग सकती है जिससे तिसरे पक्ष तथा कॉंग्रेस का नुकसान होगा और बीजेपी के वोट ना बढने पर भी वोट मॅनेजमेंट से उन्हे फायदा होगा, जो चार स्टेट्स मे होता हु‌आ नजर आया !

यही २०१४ की नीती है ! इसे कहते है चित भी मेरी पट भी मेरी !!

Thursday, January 2, 2014

ब्लॉगमागची भूमिका

मित्रांनो

डॉ देवयानी खोब्रागडे यांच्या अवमानप्रकरणात या ब्लॉगवर खूप आणि वारंवार लिखाण झालं. लोकांकडून विचारणा होऊ लागली कि डॉ देवयानी यांच्याबद्दलच्या बातम्यांसाठी समर्पित असा हा ब्लॉग आहे का ?

खरं सांगायचं तर तसं रूप आलं होतं. पण त्याची कारणं काय आहेत हे आपणा सर्वांना माहीतच आहेत. एखाद्या विषयाचा फोकस भलतीकडेच नेऊन त्य़ा प्रकरणातलं गांभीर्य कमी करून त्याला भलताच रंग देण्यात माध्यमं बदनाम आहेतच. पण या केस मधे त्यांनी ताळतंत्र सोडलं होतं. मोठ मोठ्या मथळ्यांखाली संपूर्ण गैसरमज करून देणा-या बातम्या द्यायच्या, मधेच एखादी खरी बातमी द्यायची पण त्यावर प्रतिक्रिया अशा द्यायच्या कि वाचकांना जे सांगायचं त्यात यशस्वी व्हायला हवं. 

पहिल्या दिवशी डॉ देवयानी यांना मिळालेली प्रसिद्धी हे कारण असावं का ? आपल्या माध्यमातून अशी प्रसिद्धी मिळाल्याचं लक्षात येताच बदनामीची मोहीम चालवल्यासारख्या बातम्या पेरल्या गेल्या. यात नुकसान देशाचंच झालं. यामागे सीआयए या गुप्तहेर संघटनेकडून मिळालेले पैसे हे कारण असल्याचंही आता स्पष्ट होत चाललेलं आहे. देशविघातक कारवायांसाठी कुठल्या संघटना कार्यरत असतात आणि त्यांचे पैसे घेऊन कोण काय काम करतं हे अजूनही पुरेसं समोर आलेलं नाही. ज्यांना हा देश नकोसा वाटतो असे लोक देश सोडून गेल्यानंतर भारताला शिव्या देणा-या प्रतिक्रिया देत असतात. या देशाप्रती असलेली त्यांची निष्ठा इथंच सिद्ध होते.

आम्ही वारंवार सांगून आता थकलो आहोत कि परदेश नीती मधे राजदूत आणि त्यांच्या बरोबरीच्या इतर स्टाफला, दूतावासातील व वकिलातींमधील अधिकारी व कर्माचा-यांना कसं वागवायचे याचे संकेत ठरलेले असतात. दोन देशातले संबंध सुरळीत रहावेत, वृद्धींगत व्हावेत यासाठी त्यांची नेमणूक झालेली असते. ते काही स्वत:च्या मर्जीने माहीती तंत्रज्ञान क्षेत्रात नोकरी करण्यासाठी व्हिसा मिळवून गेलेले कर्मचारी नव्हेत. त्यांना मिळणारी वागणूक ही देशाला मिळालेली वागणूक समजली जाते म्हणूनच आंतरराष्ट्रीय कायदे व दोन देशांतील संबंधानुसार अशा प्रकरणांमधे भूमिका घेतली जाते.

भारत आणि अमेरीका यांच्यात चलन विनिमयाच्या दरात फरक आहेच. म्हणूनच भारतीय रूपयात रु. ३०,०००/ इतका पगार मेडला मिळणे हे भारतात समाधानकारक पेक्षा ही वरच्या पातळीवर झालं. बीई झालेले तरुण सुरुवातीला १५,००० रु च्या नोकरीवर काम करतात. अनेक होमिओपॅथिक डॉक्टर्स तर निवासी डॉक्टर म्हणून अतिशय कमी वेतनावर काम करतात. शिवाय काही ठिकाणी प्रत्येक चुकीसाठी पैसेही कापून घेतले जातात.  भारतात वेतन इतकंच दिलं जातं. त्या पार्श्वभूमीवर संगीता रिचर्डला ३०००० रु म्हणजे घसघशीत पगार ठरला होता. शिवाय राहण्याची, जेवण्याची व इतर खर्चाची सोय करणार असल्याने रक्कम शिल्लक पडणार होती.

क्षणभरासाठी तिला अमेरीकेत गेल्यावर याव्यतिरिक्त डॉलर्स दिले नाहीत असं समजलं तरी हा सौदा चांगलाच होता. महाराष्ट्रात आलेले बिहारी २०० रु रोजंदारीवर काम करून राहतात. त्यांचं राहणं, जेवण आणि येणंजाणं हे त्यांचं तेच पाहतात. त्याचे पैसे कुणी देत नाही.

घाना, नायजेरीया अशा गरीब देशांतल्या वकिलातींना तर सुरक्षा रक्षक आणि इतर कर्मचारी अमेरीकेच्या दराने ठेवणं कसं परवडणार ?हा कायदाच मुळात त्या वकिलातीच्या आणि त्या देशाच्या दोन नागरीकांमधल्या व्यवहारांवर अतिक्रमण करणारा आहे. कायद्याचा कीसच काढायचा म्हटला तर संगीताला भारतीय अधिका-याच्या कामासाठी शासकीय पासपोर्टवरच आणलंय. मग त्या दोघांमधल्या वादाचं न्यायीक क्षेत्र हे दिल्लीचं उच्च न्यायालय आहे. अमेरीकन न्यायालय नव्हे.

ज्या कायद्याच्या आधारे कारवाई केली गेली, त्यावर भारताने कधीच सहमती दर्शवलेली नाही किंवा आक्षेपही नोंदवलेला नाही. हा राजकारणाचा भाग असू शकेल. पण म्हणून भारताच्या अधिका-यांविरुद्ध, माजी राशःट्रपती, संरक्षणमंत्री अशा रानजैतिक संरक्षण असलेल्या अतिमहत्वाच्या व्यक्तींचाही अवमान होईल असं वागायचं ?

भारताने त्या वेळी नरम भूमिका घेण्याचं कारण म्हणजे अमेरीका नुकत्याच झालेल्या हल्ल्यातून सावरली नसल्याने हा इश्श्यू तापवण्याची ती योग्य वेळ नव्हती. अमेरीकेला फक्त स्वार्थ कळतो. त्यांना त्या वेळी भारताचा निषेधही समजला नसता आणि दहशतवादी कारवायांमधे गुंतलेल्या व भारताला हव्या असलेल्या अतिरेक्यांची जी माहीती अमेरीका भारताला देत होती त्यावर परिणाम झाला असता.

तरीदेखील अमेरीकेचं वागणं समर्थनीय नव्हतंच. त्या वेळी, पहिली वेळ, दुसरी वेळ म्हणून भारताने काणाडोळा केला. पण प्रभू दयाळ यांच्या नोकराणीला पळवून नेऊन वकिलांच्या टोळल्याकडून ब्लॅकमेल केलं गेलं, कारवाईची भीती दाखवली गेली आणि तडजोडीला तयार झाल्यावर माफी मागून सोडून देण्यात आलं. त्यांच्या नोकराणीने तर लैंगिक शोषणाचाही आरोप ठेवला होता जो नंतर मागे घेतला.  त्यांच्या आधीच्या नीना मल्होत्रांना ही अशाच प्रकाराला सामोरं जावं लागलं. त्यांनी माफी मागितली नाही असं कळतं. त्यांच्याकडून दिल्ली उच्च न्यायालयात केस लावली गेली आणि दंडाची रक्कम भरण्यास नकार देण्यात आला. आणि आता देवयानीचं प्रकरण.!

या वेळी मात्र मर्यादा ओलांडल्या गेल्या. परराष्ट्रखात्याचा प्रवक्ता म्हणाला " जर दोन देशात चांगले संबंध आहे हे समजलं जात असेल तर अशी कारवाई न करता अतिशय गुप्तपणे, सापळा लावून हे धंदे करण्यामागे कुठला संदेश द्यायचा होता असं समजावं ?"

हा प्रश्न कळीचा प्रश्न आहे. अमेरीकेने रशियाच्या ४९ अधिका-यांना ते भ्रष्टाचाराच्या केसमधे सामील असतानाही सोडून दिलं हे आपण भारतविरोधी भारतीय या लेखात पाहीलंच आहे. अशी अनेक उदाहरणं आहेत. म्हणजेच ज्या कायद्याचा बाऊ केला जातो आहे तो काही तितकासा पाळला जात नाही हे दिसून येतं. हा इश्यू तिथेच संपला असता. प्रभू दयाळ, नीना मल्होत्रा आणि देवयानी यांचा हुद्दा एकच असताना, नेमणुकीचं ठिकाण एकच असताना आणि कारवाई करणारा अधिकारी एकच असताना रस्त्यात बेड्या ठोकून कपडे उतरवून अंगझडती आणि त्याहीपेक्षा अवमान होईल अशा प्रकारे झडती आणि शेवटी वेश्या आणि ड्रग्जचे व्यसनी यांच्या जेलमधे ठेवण्याची गरज होती का ?

ही केस अशा प्रकारे पहायला हवी असताना देवयानीनेच कसं भारताचं नाक कापल, अमेरीकेचे कायदे काय आहेत यावर च-हाट केलं गेलं. अगदी स्पष्ट आहे, अमेरीकेची बाजू घेण्यामागं वरील सर्व मुद्दे नजरेआड करण्याचं कारण म्हणजे देवयानीद्वेष ! हे एकमेव उत्तर आहे. हा द्वेष का आहे हे आपण जाणतोच.

ज्यांच्या बाबतीत असा द्वेष लागू होत नाही त्यांच्याकडून समतोल मतं माडली गेली. पण अशा मतांना मेडीयाने मुद्दामच झाकून टाकलं.

मेडीयाची ही वागणूक हा अनेकांना पेटून उठण्यासाठी मुद्दा बनला. आज देवयानीच्या बाबतीत जे घडतंय ते आपल्याही बाबतीत घडेल हे सर्वांच्या लक्षात येत होतं.  कुणालाही  अतिरेकी ठरवता येतं हे ही लक्षात आलं होतं.  खैरलांजी हत्याकांडाच्या चौकशीसाठी निघालेल्या मोर्चात नक्षलवादी होते असा शोध लागला. तर काहींनी भोतमांगे कुटुंबियांचीच चूक असेल अशा प्रकारच्या प्रसंगाचं गांभीर्य कमी करणा-या बातम्या दिल्या.

मेडीयाचा हा खोटेपणा देवयानीच्या निमित्ताने सहजच चव्हाट्यावर आणता येणं शक्य झालं. या कामी दैनिक महानगरचे संपादक सुनील खोब्रागडे यांनी अपार कष्ट केले. अनेक महत्वाचे इन्पुटस दिले.  आमची साधनं अपुरी आहेत, पण आहे त्यातच सुरूवात तर केली पाहीजे. सोशल मेडीयाच्या माध्यमातून अण्णांचं आंदोलन लॉंच केलं गेलं. एका पार्टीचा उदय झाला. आपल्याकडे टीव्ही सारखं प्रभावी माध्यम नाही हे खरंच. पण डॉ देवयानीच्या प्रकरणात ज्याप्रमाणे डू ऑर डाय या भावनेनं आपण माहीती शेअर केली तर आपण एकमेकांना जोडले जाऊ शकतो. मागच्या पिढीकडे हे साधन नव्हतं. सुदैवाने आता मेडीयाने कितीही खोडसाळ बातम्या दिल्या तरी त्या खोडून कशा काढायच्या हे आपल्याला माहीत झालंच आहे.

डॉ देवयानी अवमानपरकरणी घडलेल्या घटनांचे पडसाद आणि विश्लेषण चालूच राहील, त्यानिमित्ताने आपण नवं काय शिकलो हे महत्वाचं. या ब्लॉगच्या मागे हेच उद्दीष्ट आहे. मनात आलं आणि ब्लॉगवर लिहीलं अशा प्रकारे ब्लॉग रोजच्या रोज हलता ठेवण्यात आम्हाला रस नाही. त्याचा घटनांशी, आंदोलनाशी आणि जाणिवांशी संबंध असेल तरच  त्या लिखाणाला अर्थ आहे.    म्हणूनच जेव्हां जेव्हां अशा घटना लक्षात येतील त्या वेळी त्याचा पाठपुरावा करण्याबरोबरच त्यातून नवं काय शिकता आलं हे पाहण्याकडे या ब्लॉगची भूमिका असेल. 

Wednesday, December 25, 2013

भारतविरोधी भारतीय

डॉ देवयानी खोब्रागडे यांच्या अटक झाल्या क्षणापासून त्या निर्दोष असल्याची कागदपत्रे सातत्याने त्यांचे वडील श्री. उत्तम खोब्रागडे यांनी सर्वांना दिलेली आहेत. या कागदपत्रांची संपूर्ण छाननी केल्यानंतर केंद्र सरकारला ही अटक बेकायदेशीर असल्याचं पटलं. त्य़ांना हे प्रकरण अर्थातच माहीत होतं. मात्र अटकेच्या वेळी अमेरीकेने केलेल्या अपमानामुळे देशभर संतापाची भावना उमटली. अशा वेळी कुणीही सूज्ञ नागरीक डॉ. देवयानीच्या मागे उभा राहील. पण भारतात राहून सातत्याने देशविधातक कारवायांमधे गुंतलेल्या आणि त्या कारवायांना देशभक्तीचा मुलामा चढवलेल्या अमेरीकेच्या काही एजंटांनी या प्रकरणात खोट्या बातम्या देण्याचं तंत्र अवलंबलं. त्या बातम्यांवर परदेशस्थ भारतियांना लगेचच विश्वास टाकला. कारण एकच, त्यांना तेच ऐकायचं होतं. देवयानी खोब्रागडे इतकी उच्चपदस्थ अधिकारी आहे याबद्दलची असूया, मत्सर, द्वेष यामुळे सतत तिच्याबद्दलच्या नकारात्मक प्रचारावर भर दिला गेला.

ज्या मिनिमम वेजेसबद्दल आज ते गळे काढताहेत त्याच लोकांची मोलकरणींच्या संपात अतिशय कुजकट अशी वक्तव्ये होती, अत्यंत कुजकट आणि हलक्या दर्जाचे विनोद आनि त्याला दिलेली दिलखुलास दाद हे या प्रश्नावरची त्यांची कळकळ स्पष्ट करते.

हे लोक जेव्हां भारतात होते तेव्हां त्यांच्या मोलकरणीला किती पगार देत होते ? ड्रायव्हरला यातले किती लोक पगार देतात आणि किती तास काम करवून घेतात ? या प्रश्नांची उत्तर आपल्या सर्वांना माहीत आहेत. देवयानीचं आडनाव जर कुबेर किंवा चिटणीस असतं तर आज जसं काही तिसरं स्वातंत्र्ययुद्धच पेटलंय कि काय असं वातावरण निर्माण केलं गेलं असतं.

या लोकांना खरं जाणूनच घ्यायचं नव्हतं याचा एक दणदणीत पुरावा लवकरच जाहीर करणार आहे.  या देशद्रोह्यांनी देवयानी बद्दल सातत्याने मोहीम चालविल्याने त्याला उत्तर देणारी मोहीम या ब्लॉगवरून चालवावी लागली. आजच्या पोस्टमधे जी कागदपत्रे सरकारला दिली त्याची पीडीएफ फाईल असलेल्या लिंका दिलेल्या आहेत. देवयानीच्या वकीलाने केलेला खुलासा आणि एका अमेरीकेच्या परराष्ट्रखात्यातल्या अधिका-याने अमेरीकेला दिलेला घरचा आहेर हे सर्व दिलेलं आहे.

आता खटला चालेल तेव्हां सर्व समोर येईलच. देवयानी यांना अटक होण्याची शक्यता मात्र मावळलेली आहे असं वाटतं. अमेरीकेच्या हस्तकांसाठी ही अत्यंत वाइट बातमी देताना अजिबात खेद होत नाही.

 तूर्तास  दैनिक महानायकचे संपादक सुनील खोब्रागडे यांचा
दि. २१ डिसेंबर रोजीचा एक लेख इथे वाचकांसाठी देत आहोत. या लेखातून बरीचशी वस्तुस्थिती स्पष्ट होईल. 

-  बहिष्कृत भारत
  भारतविरोधी भारतीय
December 21, 2013 at 9:47pm

राष्ट्रहित आणि स्वहित असा प्रश्न जेव्हा निर्माण होतो तेव्हा खरा देशभक्त स्वत:चे हित बाजूला ठेऊन राष्ट्राच्या हिताला प्राधान्य देत असतो, असे इतिहासातील अनेक उदाहरणांवरुन आपल्याला दिसून येईल.  भारत नावाच्या राष्ट्राच्या जडणघडणीतील अत्यंत महत्वपूर्ण व्यक्ती असलेल्या डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरांनी 13 डिसेंबर 1946 रोजीपंडित जवाहरलाल नेहरु यांनी देशातील राजेशाही संस्थानाचे अस्तित्व कायम ठेऊन भारताचे राष्ट्र तयार करावे या राष्ट्रनिर्मितीच्या संकल्पनेला विरोध करताना सांगितले होते की,`मी हे जाणतो की,आज आपण राजकीय,आर्थिक आणि सामजिकदृष्टया विभाजीत आहोत. एकमेकांशी संघर्षरत असलेल्या प्रतिस्पर्धी गटात आपण विभागलो गेलो आहोत. मी ही अशाच एका प्रतिस्पर्धी गटाचा नेता आहे.परंतु, हे सर्व असूनही विश्वातील कोणत्याही शक्तीला या देशाच्या एकात्मतेच्या आड मी येऊ देणार नाही.' अन्यत्र एके ठिकाणी ते म्हणतात, `मी पथमत: भारतीय आहे आणि अंतिमत:सुद्धा भारतीयच आहे.' इतके प्रखर राष्ट्रभक्त असलेल्या डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरांना आपल्या जीवनाचे अधिष्ठान मानणाऱया संपूर्ण भारतीयांची हिच भावना आहे हे, डॉ. देवयानी खोबरागडे यांना अमेरिकेने दिलेल्या अपमानास्पद वागणुकी विरोधात संपूर्ण देश ज्यापमाणे एकवटला त्यावरुन सिद्ध झाले आहे. मात्र, तरीही  काही पोटार्थी पत्रकार आणि सोशल मिडीयावर चहाटळकी करणारे बुणगे मात्र याला अपवाद ठरले आहेत.ज्यांना देशभक्ती, आंतरराष्ट्रीय करार, आंतरराष्ट्रीय संकेत आणि भू-राजनैतिक घडामोडींचे ज्ञान नाही अशा चिल्लरांचे असे वर्तन एकवेळा समजून घेता येईल.परंतु, या चिल्लरांच्या रांगेत जेव्हा लोकसत्ता, सकाळ, लोकमत यासारख्या धनकुबेर वर्तमानपत्रात कार्यरत असलेले संपादक व पत्रकार सामील होतात तेव्हा त्यांचे वर्गीकरण `भारतविरोधी भारतीय' या प्रजातीमध्ये करणे क्रमपाप्त ठरते.
डॉ. देवयानी खोबरागडे यांच्यावर अमेरिकन न्याय खात्याच्या दक्षिण न्यूयॉर्क  विभागाचे वकील प्रीतेंदरसिंग भरारा यांनी, घरकामासाठी भारतातून आणलेल्या गृहसेविकेला अमेरिकन किमान वेतन कायद्यानुसार ठरविलेल्या वेतनापेक्षा कमी वेतन दिल्याचा आणि तिला अमेरिकेत आणण्यासाठी व्हिसा मिळावा म्हणून खोटी कागदपत्रे तयार केल्याचा आरोप ठेवला आहे. डॉ. देवयानी यांनी आपल्यावरील आरोप न्यायालयासमोर अमान्य केल्याने त्यांना 2 लाख50 हजार अमेरिकन डॉलर म्हणजेच सुमारे दीड कोटी रुपये इतक्या रक्कमेच्या कागदोपत्री हमीवर जामीन देऊन मुक्त करण्यात आले आहे. त्यांच्यावरील हे आरोप खरे आहेत अथवा खोटे हा न्यायालयीन प्रकियेचा भाग आहे. त्यामुळे यावर कोणतेही भाष्य करणे उचित होणार नाही.मात्र, या आरोपांसाठी त्यांच्याविरुद्ध गुन्हेगारी स्वरुपाची कारवाई करुन त्यांना त्यांच्या मुलींच्या शाळेच्या पुढे भररस्त्यात अटक करण्यात आली. अटकेनंतर त्यांची विवस्त्र करुन अंगझडती घेण्यात आली.सराईत गुन्हेगारापमाणे त्यांची कॅव्हिटी टेस्ट करुन डिएनए स्वॅबिंग्स घेण्यात आल्या. त्यांना हातकड्या घालून न्यायालयात उभे करण्यात आले. ही बाब केवळ डॉ.देवयानी यांचीच नव्हे तर संपूर्ण भारताची मानखंडणा करणारी आहे. भारत सरकारने, देशातील सर्व राजकीय पक्षांनी, विविध संस्था संघटनांनी अमेरिकेचा निषेध केला आहे तो याच मुद्यावर! मात्र अमेरिकेच्या चरणाला शेंडी टांगून असलेल्या काही नतद्रष्टांनी भारतीय अस्मितेची मानखंडणा करणाऱया या घृणास्पद घटनेची निंदा करण्याऐवजी गैरलागू मुद्दे उपस्थित करुन आपल्या कोत्या मनोवृत्तीचे दर्शन घडविले आहे.
 हा तर भारतविरोधी कट
 डॉ. देवयानी खोबरागडे यांच्या अटकेचे प्रकरण पथमदर्शनी दिसते तेवढे साधे आणि सरळ नाही. तर हा एका भयंकर भारतविरोधी कटाचा भाग आहे हे आपण समजून घेतले पाहिजे.मोलकरणीला कमी वेतन देण्याची प्रकरणे यापूर्वीही अमेरिकेत घडली आहेत. 2011 साली अमेरिकेत भारताचे महावाणिज्य दूत असलेले प्रभू दयाल यांची मोलकरीण संतोष भारद्वाज हिने प्रभू दयाल आणि त्यांच्या कुटूंबियांवर वेतन न देता काम करवून घेतल्याचा, बळजबरीने डांबून ठेवल्याचा आणि तिचे लैंगिक शोषण केल्याचा आरोप केला होता. मात्र, या आरोपावरुन प्रभू दयाल यांच्याविरुद्ध अमेरिकन न्याय खात्याने फौजदारी स्वरुपाचा गुन्हा नोंदविला नव्हता.हे प्रकरण दिवाणी स्वरुपाचे आहे म्हणून संतोष भारद्वाज हिने प्रभू दयाल यांच्यावर न्यायालयात नुकसान भरपाईसाठी खटला दाखल करावा अशी भूमिका त्यावेळी घेण्यात आली होती. त्यानंतर 2012 मध्ये अमेरिकन वाणिज्य दूतावासात कार्यरत असलेल्या नीना मल्होत्रा या उच्चपदस्थ महिला अधिकाऱयाची गृहसेविका शांती गुरंग हिनेही असेच आरोप केले. त्यावेळी अमेरिकन न्याय खात्याने फौजदारी स्वरुपाची कारवाई केली नव्हती.  मॉरिशसचे उच्चायुक्त सोमदत्त सोबोरुन यांनी आपल्या मोलकरणीला कमी पगार दिल्याच्या कारणास्तव त्यांच्याविरुद्ध 2009 मध्ये दिवाणी दावा दाखल करण्यात आला होता. यामध्ये त्यांना 5 हजार डॉलरचा दंड व मोलकरणीला 25 हजार डॉलरची भरपाई देण्याचे आदेश अमेरिकन न्यायालयाने दिले. काही महिन्यांपूर्वीच रशियन दूतावासातील 49 अधिकाऱयांविरुद्ध वैद्यकीय मदत व सार्वजनिक आरोग्य निधीमध्ये अमेरिकन कायद्याचा भंग केल्याच्या आरोपाखाली फौजदारी कारवाई करण्यात आली. अमेरिकन कायद्याचा विविध देशांच्या दूतावासीय अधिकाऱयांकडून भंग केल्याबाबतची कितीतरी पकरणे यापूर्वी घडलेली आहेत.परंतु यापैकी कोणालाही अटक करुन बेड्या घालण्याची व त्यांना विवस्त्र करुन झडती घेण्याची कारवाई अमेरिकन न्याय खात्याने केलेली नव्हती.हे पाहता डॉ. देवयानी खोबरागडे यांच्याविरुद्ध अमेरिकन न्यायखात्याने केलेली कारवाई म्हणजे काहीतरी विशिष्ट हेतू ठेऊन केलेला कट आहे असा जो आरोप भारताने केला आहे त्यात निश्चितच तथ्य दिसून येते.
रिचर्डस् कुटूंबिय अमेरिकेचे हेर?
डॉ. देवयानी खोबरागडे यांची गृहसेविका संगीता रिचर्डस् आणि अमेरिकन न्यायखाते व परराष्ट्र व्यवहार खाते यांच्यातील व्यवहाराची सखोल तपासणी सरकारने केल्यास यामागील राष्ट्रविघातक कारवाया उघडकीस येण्याची  मोठी शक्यता आहे. डॉ. देवयानी यांच्यासोबत अमेरिकेत गेल्यानंतर सुरुवातीच्या पाच महिन्यात संगीता रिचर्डस् हिने देवयानीचा व तिच्या मुलांचा विश्वास संपादन केला. ती स्थानिक चर्चच्या कार्यक्रमामध्ये नियमितपणे सहभागी होत असे.यातूनच मे 2013 मध्ये तीने स्थानिक चर्च संचालीत एका उपक्रमामध्ये अर्धवेळ काम करण्याची परवानगी डॉ. देवयानी यांच्याकडे मागितली. मात्र, डॉ. देवयानीने असे करणे बेकायदेशीर आहे असे सांगून तिला यासाठी परवानगी नाकारली.यानंतर संगीता 23 जून 2013 रोजी काहीही न सांगता घरातून निघून गेली.याबाबतची माहिती दुसऱया दिवशी भारतीय दूतावासाला देण्यात आली. त्याचपमाणे न्यूयॉर्क  पोलिसांकडे संगीता रिचर्डस् हरविल्याची तकार करण्यात आली. मात्र, संगीता रिचर्डस् प्रौढ व्यक्ती असल्याने तिच्या हरविल्याची तक्रार तिच्या कुटूंबियाने करणे आवश्यक आहे असे सांगून न्यूयॉर्क  पोलिसांनी ती तक्रार नोंदवून घेण्यास नकार दिला.यामुळे डॉ. देवयानी हिने 25 जून रोजी न्यूयॉर्क  पोलिसांना लेखी तक्रार  पाठविली.याबाबतची प्राथमिक चौकशी करुन न्यूयॉर्क पोलिसांनी संगीता रिचर्डस् हरविल्याची रितसर तक्रार त्याचदिवशी नोंदवून घेतली.पण या तक्रारीच्या अनुषंगाने कोणताही तपास केला नाही. 1 जुलै रोजी देवयानीला बेकायदा स्थलांतरीतासाठी काम करणाऱया एका संस्थेचे नाव सांगून एका अज्ञात व्यक्तीने दूरध्वनी केला.या व्यक्तीने देवयानीकडे दरदिवशी 19 तास काम केल्याबाबतचे वेतन देऊन संगीता रिचर्डस् हिला सर्वसाधारण व्हिसा मिळवून देण्यासाठी सहाय्य करण्याची मागणी केली. अन्यथा कायदेशीर कारवाई करण्याची धमकी दिली. याबाबतची लिखित तक्रार डॉ. देवयानीहिने भारताच्या परराष्ट्र व्यवहार खात्याला त्याचपमाणे न्यूयॉर्क  पोलिसांना केली. दिनांक5 जुलै रोजी भारतातील अमेरिकन दूतावासाचे संबंधित अधिकारी मायकेल फिलीप्स् यांच्याकडे भारताच्या परराष्ट्र व्यवहार खात्याने संपूर्ण माहिती देवून संगीता रिचर्डस् हिचा ठावठिकाणा शोधून काढण्यासाठी अमेरिकन परराष्ट्र व्यवहार खात्याने मदत करावी असे पत्र त्यांना देण्यात आले. या पत्रावर केलेल्या कारवाईसंबंधाने भारताच्या परराष्ट्र व्यवहार खात्याने दोन वेळा पत्र पाठवून माहिती मागितली. परंतु अमेरिकेच्या परराष्ट्र व्यवहार खात्याने त्याचपमाणे न्यूयॉर्क पोलीस विभागाने याबाबत काहीही माहिती भारत सरकारला दिली नाही.त्यानंतर 8 जुलै रोजी बेकायदा स्थलांतरीतासाठी काम करणाऱया एका वकीलाच्या कार्यालयात डॉ. देवयानी, दूतावासातील तिचे दोन सहकारी, संगीता रिचर्डस् व तिचा वकील यांच्यात बैठक झाली.या बैठकीत संगीताने 10 हजार डॉलर व अमेरिकेत वास्तव्य करण्यासाठी कायमस्वरुपी व्हिसा मिळवून देण्याची मागणी केली. डॉ.देवयानी हिने 10 हजार डॉलर देण्याचे मान्य केले. परंतु, अमेरिकन व्हिसा मिळवून देण्याची बाब आपल्या आवाक्याबाहेर असल्याचे सांगितले.या बैठकीच्या लिखित वृत्तांतांसह डॉ. देवयानीने याबाबतची  तकार न्यूयॉर्क  पोलिसांकडे तसेच दिल्ली पोलिसांकडे केली.यानंतर संगीताचा पती फिलीप रिर्चडस् याने देवयानी व भारत सरकारविरुद्ध न्यायालयात याचिका दाखल केली, परंतु केवळ चारच दिवसात ही याचिका मागे घेतली. त्यानंतर भारतीय परराष्ट्र खाते व अमेरिकन परराष्ट्र खाते यांच्यामध्ये अनेकवेळा पत्रव्यवहार झाला. परंतु, अमेरिकेने अथवा न्यूयॉर्क  पोलिसांनी या पत्रव्यवहारास उत्तर दिले नाही. यामुळे डॉ. देवयानी हिने दिल्ली उच्च न्यायालयात याचिका दाखल केली. न्यायालयाने यावर अंतरिम आदेश देवून संगीता रिचर्डस् व तीचा पती यांना डॉ. देवयानी हिच्याविरुद्ध भारताबाहेरील कोणत्याही न्यायालयात तकार करण्यास अथवा दाद मागण्यास तात्पुरती स्थगिती दिली. दिल्लीतील  महानगर दंडाधिकाऱयांनी संगीता रिचर्डस् हिच्याविरुद्ध अटकेचे आदेश 19 नोव्हेंबर 2013 रोजी जारी केले. भारत सरकारने या आदेशाची प्रत 6 डिसेंबर 2013 रोजी भारतातील अमेरिकेच्या दूतावासाला, अमेरिकेच्या गृहखात्याला तसेच न्यूयॉर्क पोलिसांना देवून संगीता रिचर्डस् हिला शोधून भारताच्या हवाली करण्याची विनंती केली.मात्र, यापैकी कोणतीही विनंती मान्य न करता अमेरिकेने 12 डिसेंबर रोजी डॉ. देवयानी यांना अटक केली.त्यापूर्वी 10 डिसेंबर 2012 रोजी संगीता रिचर्डस् हिचा पती व मुलांना अमेरिकन सरकारने स्वत:च्या खर्चाने गुप्तपणे अमेरिकेत आणले. हा सर्व घटनाक्रम पाहता यामागे मोठ्या कटाची शक्यता भारत सरकारने व्यक्त केली आहे. संगीता रिचर्डस् हिचा पती फिलीप हा अमेरिकन अधिकाऱयासाठी ड्रायव्हर म्हणून काम करीत होता. सासरा भारतातील अमेरिकन दूतावासामध्ये खाजगी कर्मचारी म्हणून कार्यरत आहे. तिची सासू अमेरिकन दूतावासातील अधिकाऱयाकडे मोलकरणीचे काम करीत होती. ही वस्तुस्थिती आता उघड झाली आहे. यामुळे संगीता रिचर्डस् कुटूंब अमेरिकेसाठी हेरगिरी करीत होते किंवा काय या दिशेने तपास होण्याचीआवश्यकता भारतीय परराष्ट्र व्यवहार खात्याने व्यक्त केली आहे.वरील सर्व वस्तुस्थिती पाहिल्यास अमेरिकेने भारतातील कायद्यांना, भारतीय न्यायव्यवस्थेला  त्याचप्रमाणे भारतीय प्रशासकीय पद्धतीला कस्पटासमान लेखले आहे. एखाद्या देशाच्या नागरिकावर सुरु असलेली कायदेशीर कारवाई त्याच्यावर अन्याय करणारी आहे हे परस्पर ठरवून त्या  व्यक्तीला बेकायदेशीरपणे देशाबाहेर घेऊन जाणे हा त्या देशाविरुद्ध केलेला गुन्हा आहे. यासाठी फिलीप कुटूंबियांना व्हिसा देणारे अमेरिकन वकीलातीमधील अधिकारी तसेच त्यांना सहाय्य करणारे अमेरिकन नागरिक व अमेरिकन अधिकारी भारताविरुद्ध युद्ध पुकारल्याच्या गुह्यास पात्र ठरतात. ही बाजू लक्षात न घेता भारतातील प्रसारमाध्यमांचे संपादक, सोशल साईटस्वर संगीता रिचर्डस् व अमेरिकन अधिकाऱयांची बाजू घेणारे लोक या देशद्रोह्यांचे  भारतातील पाठीराखे म्हणून कारवाईस पात्र ठरतात.
राजनैतिक अधिकाऱयांवरील कारवाई आणि व्हिएन्ना करार
 डॉ. देवयानी या डिप्लोमॅट संवर्गातील अधिकारी नाहीत तर दूतावासीय अधिकारी आहेत. यामुळे त्यांना 1961 च्या व्हिएन्ना कराराप्रमाणे डिप्लोमॅटीक अधिकाऱयांना परदेशी कायद्यातंर्गत फौजदारी कारवाई करण्यापासून रोखणारे संरक्षणात्मक नियम लागू होत नाहीत.तर 1963 च्या करारापमाणे दूतावासीय कर्मचारी व अधिकारी यांना लागू असलेले मर्यादीत संरक्षणाचे नियम लागू होतात हा पवित्रा अमेरिकन परराष्ट्र खात्याने व न्यायखात्याने घेतला आहे.काही मराठी वृत्तपत्रांच्या संपादकीय उकीरड्यावर भक्ष्य शोधणारे कलमकसाई अमेरिकेच्या या दुटप्पी वागणुकीचा डमरु वाजविण्यात धन्यता मानत आहेत. याबाबतीतील नेमकी वस्तुस्थिती समजून घेतली पाहिजे.या करारातील अनुच्छेद 41(1) नुसार अत्यंत गंभीर स्वरुपाचा गुन्हा असल्याशिवाय दूतावासीय अधिकाऱयांना अटक करु नये अशी स्पष्ट तरतूद आहे. या कराराच्या अनुच्छेद 47 नुसार दूतावासात काम करणाऱया खाजगी कर्मचाऱयांना `वर्क  परमिट'ची आवश्यकता नाही असे स्पष्ट करण्यात आले आहे. यामुळे दूतावासातील अधिकाऱयांचे खाजगी काम करणाऱया कर्मचाऱयांना एच-1(बी) व्हिसाऐवजी बी-3 (दूतावासीय कर्मचारी) व्हिसा देण्यात येतो.  एच-1 (बी) व्हिसा अंतर्गत आवश्यक असलेली वर्क परमिटची अट लागू नसलेल्या कर्मचाऱयांना अमेरिकेतील किमान वेतन कायदा लागू होत नाही. भारत सरकारने ही बाब अमेरिकेच्या निदर्शनास वेळोवेळी आणून दिली आहे.परंतु अमेरिकन सरकार आंतरराष्ट्रीय कायदे केवळ स्वत:च्या सोयीप्रमाणे वापरत असते असे अनेकदा दिसून आले आहे. 1980 मध्ये निकारागुआ देशातील आंतकवाद्यांना शस्त्रपुरवठा केल्याच्या व त्या देशाच्या नाविक बंदरांचा बेकायदेशीर वापर केल्याच्याआरोपाखाली अमेरिकन सरकारवर आंतरराष्ट्रीय न्यायालयात खटला भरण्यात आला होता. न्यायालयाने यामध्ये अमेरिकेला दोषी ठरवून दंडाची व निकारगुआ सरकारला नुकसानभरपाई देण्याची शिक्षा अमेरिकेला सुनावली. मात्र, अमेरिकेने संयुक्त राष्ट्र संघाच्या सुरुक्षा समितीमध्ये हे प्रकरण आणून आपल्याकडे असलेल्या नकाराधिकाराचा वापर करून आंतरराष्ट्रीय न्यायालयाचा निर्णय मानण्यास नकार दिला. अमेरिकन गुप्तचर संस्था सीआयएचा पाकिस्तानातील हेर असलेल्या रेमंड डेव्हिस याने 2011 मध्ये लाहोरमध्ये दोन व्यक्तींचे खून केले. याबाबत त्यास अटक करण्यात आली. मात्र, अमेरिकेने त्याला राजनैतिकअधिकाऱयाचा दर्जा असल्याचा बहाणा करुन पाकिस्तानने त्यास बेकायदेशीररित्या अटक केल्याचा कांगावा केला. शेवटी मृतांच्या नातेवाईकांना नुकसानभरपाईची रक्कम देऊन त्याची सुटका करण्यात आली. अशी असंख्य प्रकरणे सांगता येतील की ज्यामध्ये अमेरिकेने दंडेलशाही करुन आंतरराष्ट्रीय करार व कायद्यांचा आपल्याला फायदेशीर पद्धतीने अर्थ लावला आहे.डॉ. देवयानी खोबरागडे यांना देण्यात आलेली अपमानास्पद वागणूक व मनमानी पद्धतीने केलेली कारवाई यापासून त्यांना संरक्षण देण्याच्या उद्देशाने भारताने त्यांची बदली संयुक्त राष्ट्र संघातील भारताच्या स्थायी मिशनमध्ये केली आहे. यामुळे त्या संपूर्ण राजनैतिक संरक्षणासाठी पात्र ठरतात. हे संरक्षण त्यांना पूर्वलक्षी प्रभावाने लागू होते.परंतु, अमेरिकन अधिकारी याबाबतीतही आडमुठी भूमिका घेत आहेत. परराष्ट्रांच्या राजनैतिक अधिकाऱयांना संरक्षण देण्याबाबतच्या 1961 च्या व्हिएन्ना करारानुसार असे संरक्षण पूर्वलक्षी प्रभावाने लागू करण्याचे स्पष्ट निर्देश आहेत.याबाबत सौदी अरेबियाचे राजकुमार तुर्की बीन अब्दुलअजीज यांचे पूर्वोदाहरण मार्गदर्शक ठरावे. या राजकुमाराने 1982 मध्ये एका इजिप्शियन महिलेला तिच्या इच्छेविरुद्ध  आपल्या घरात डांबून ठेवल्याच्या आरोपावरुन मियामी पोलिसांनी त्याच्या घरावर छापा घातला.अब्दुलअजीज यांच्या खाजगी सुरक्षारक्षकांनी पोलिसांसोबत झटापट करुन त्यांना पळवून लावले. अब्दुल अजीज यांनी त्यांच्या नागरी अधिकाराचा भंग केल्याबाबत मियामी परगण्याविरुद्ध न्यायालयात खटला दाखल केला.तर पोलिसांनी अब्दुलअजीज यांच्याविरुद्ध खटला दाखल केला. यानंतर तीन आठवड्यांनी अब्दुलअजीज यांना त्याच्या देशाने संपूर्ण डिप्लोमॅटीक संरक्षण बहाल केले. अमेरिकन परराष्ट्र खात्याने हे असे संरक्षण पूर्वलक्षी प्रभावाने देता येणार नाही अशी भूमिका घेतली. मात्र, न्यायालयाने अमेरिकन परराष्ट्र व्यवहार खात्याचे म्हणणे फेटाळून लावले. एखादा राजनयीक अधिकारी  गुन्हा नोंदविण्याच्या वेळी डिप्लोमॅटीक संरक्षणप्राप्त नसेल परंतु त्याचे पद डिप्लोमॅटीक संरक्षण मिळण्याच्या योग्यतेचे असेल तर त्याला पूर्वलक्षी प्रभावाने डिप्लोमॅटीक संरक्षण लागू करता येईल असा निवाडा न्यायालयाने दिला.रेमंड डेव्हिस याच्या प्रकरणात अमेरिकेने याच निवाड्याचा आधार घेऊन त्यास पूर्वलक्षी प्रभावाने राजनैतिक संरक्षण दिले व त्यास खूनाच्या गुह्यातून वाचविले होते हे येथे लक्षात घेतले पाहिजे.डॉ. देवयानी खोबरागडे यांच्यावरील आरोपाच्या अनुषंगाने त्या दोषीठरतील अथवा निर्दोष सुटतील हा न्यायालयाच्या कक्षेतील भाग आहे. परंतु या निमित्ताने निर्माण झालेले प्रश्न अमेरिकेची दुटप्पी भूमिका उघडी पाडणारे आहेत. अमेरिका सद्यस्थितीत भारताचा मित्र आहे,स्ट्रटेजिक पार्टनर आहे अशी कितीही मखलाशी करीत असला तरी अमेरिका भारताचा मित्र कधीच नव्हता.अमेरिकेच्या राजकारणाला नैतिक आणि मानवी चेहरा कधीच नव्हता.दुसरे महायुद्ध समाप्त झाल्याबरोबर ब्रिटनला शस्त्र पुरवठा आणि इतर मदत केल्याबाबतचे अवाढव्य कर्ज ब्रिटनने आताच द्यावे अन्यथा आपण ब्रिटनवर हल्ला करु अशी भूमिका अमेरिकेने त्यावेळी घेतली होती.इराकविरुध्द केलेला हल्ला,लिबीयामध्ये केलेला हस्तक्षेप पाकिस्तानवरील द्रोण हल्ले, अफगाणिस्तानमधील कारवाई अशा अनेक प्रकरणात अमेरिकेने आंतरराष्ट्रीय कायदे व संकेत पायदळी तुडविले आहेत. जगातील करोडो लोकांच्या मृत्यूचे कारण अमेरिका ठरली आहे.अमेरिकेने जी काही आर्थिक संपन्नता प्राप्त केली आहे ती युध्दखोरीतून आणि माणसे मारण्याचा उद्योग करुन प्राप्त केली आहे.यामुळे अमेरिका म्हणजे  मानवी हक्कांची अंमलबजावणी करण्यासाठी पृथ्वीतलावर जन्म घेतलेला एकमेव देवदूत आहे असा भ्रम बाळगणे व्यर्थ आहे.
 डॉ. देवयानी खोबरागडे यांना भारताच्या प्रतिनिधी अशा व्यापक दृष्टीकोनातून  पाहणे आवश्यक आहे.  परंतु  असा विशाल दृष्टीकोन न ठेवता त्यांना  वैयक्तिक जाती-धर्म आणि वर्गविषयक पूर्वग्रह ठेऊन पाहणाऱया आणि अमेरिकेची भलामण करणाऱया दै. सकाळ, दै.लोकसत्ता, दै. लोकमत, महाराष्ट्र टाईम्स इत्यादींसारख्या धनकुबेर वृत्तपत्रात कलम कामाठी म्हणून काम करणाऱया भारतविरोधी भारतीयांच्या प्रजातीमधील लोकांना आम्ही विचारु इच्छितो की, आदर्श घोटाळ्यात सामिल असणाऱया  अशोक चव्हाण, जयराज फाटक, प्रदिप व्यास, सीमा व्यास,रामानंद तिवारी, सुभाष लाला, सुरेश जोशी अशा शेकडो भ्रष्टाचारी अधिकाऱयांविरुध्द तुमची भूमिका काय आहे? यांच्या व यांच्यासारख्या असंख्य भ्रष्टाचाऱयांचे पितळ उघडे पाडण्यासाठी तुमची लेखणी का सरसावत नाही? स्वतला निर्भिड आणि विद्वान संपादक म्हणत संपादकीय उकीरडे फुंकणाऱ्या संपादकांनी  याची उत्तरे द्यावीत. अशा उकिरडे फुंकणाऱ्यांना आम्ही विचारु इच्छितो की,  वृत्तपत्र समुहाच्या नावाने सरकारकडून मिळविलेल्या भुखंडावर एक्सपेस टॉवर्स नावाची गगनचुंबी इमारत उभारुन ती भाड्याने देऊन रामनाथ गोयंका यांनी प्रचंड नफा कमाविला. आता ही इमारत ब्लॉकस्टोन नावाची अमेरिकन कंपनी आणि  ज्यामध्ये शरद पवारांची मुलगी सुपिया सुळे हिची गुंतवणुक आहे अशी पंचशील रियालीटी नावाची  पुण्यातील कंपनी यांनी नऊशे कोटी रुपयांना 13 नोव्हेंबर 2013 रोजी  विकत घेतली आहे. या व्यवहारात काय गोलमाल आहे हे लिहीताना लोकसत्ताकारांच्या लेखणीवर कांडोम चढविला जातो याचे कारण काय ? याची उत्तरे लोकसत्ताकारांनी व अमेरिकेच्या सांडपाण्यावर जगणाऱया बाजारबुणग्यांनी द्यावीत.

Devyani Khobragade case: Please stop spreading false news and information.

If you shut up truth and bury it under the ground, it will but grow, and gather to itself such explosive power that the day it bursts through it will blow up everything in its way.
- EMILE ZOLA


  Many  Indo-Americans, Pro Americans and their agents hired by CIA in India were delighted with the arrest of Indian diplomat Dr. Devyani Khobragade.  Unfortunately, there are so many things,  these people Do NOT Want To Hear On this issue. It is very clear that they will hear what they want to.

The facts being ignored right from day 1 are to be read very carefully.  There is an article published in the Times of India dt. 25.12.2013, 


Devyani Khobragade case: Did US state department overplay heavy hand?

"It is clear that Mark Smith, the Diplomatic Security Services agent who handled the investigation and arrest of Dr Khobragade and who drew up and swore to the accuracy of the formal complaint in this case, simply made an error in reading the DS 160 form which supported the visa application for the domestic worker, Sangeeta Richard. He erroneously and disastrously believed that the $4,500/month salary entry on the form was Ms Richard's expected salary when, in fact, it was clearly a reporting of the base salary to be earned by the employer, Dr Khobragade, in the United States," Arshack explained in an email to ToI.    

   http://timesofindia.indiatimes.com/india/Devyani-Khobragade-case-Did-US-state-department-overplay-heavy-hand/articleshow/27921673.cms

CNN interview of Indian Diplomat Devyani’s lawyer

What happened to Devyani can happen to you tomorrow! Without trial you could be arrested… Without knowing the truth, you could be humiliated, handcuffed, strip searched, cavity searched, DNA swabbed, kept with drug addicts…. If conspiracy can humiliate a diplomat, leave aside laypeople….

Please see the CNN interview of Indian Diplomat Devyani’s lawyer to know the truth!!!

http://us.cnn.com/video/data/2.0/video/bestoftv/2013/12/19/indian-diplomat-arrested-arshack-newday.cnn.html



A letter from a retired U.S. Foreign Service officer to Washingtonpost...

I fear that the U.S. mania regarding security allows excesses such as the Devyani Khobragade case to be tolerated. But it should not be: The result is worse security for our New Delhi staff, as the article noted. The U.S. Marshals Service should be investigated and, if the abuses are confirmed, the officials involved should be severely disciplined.

http://www.washingtonpost.com/opinions/india-diplomat-suffered-because-of-americans-excessive-security/2013/12/22/b321cf02-6906-11e3-997b-9213b17dac97_story.html 

You are already aware Govt of India is trying its best to resolve the issue, we have to show our support to the Govt.
We have to raise our voice for justice and stand together in solidarity for Indian Community and Immunity. Please sign the below petition to get justice for India.

Immediately drop all charges against Indian diplomat Devyani Khobragade

https://petitions.whitehouse.gov/petition/immediately-drop-all-charges-against-indian-diplomat-devyani-khobragade/Dg6rPPjW
Please post your comments or questions.  

Monday, December 23, 2013

देवयानी खोब्रागडे यांच्याबद्दल खोडसाळ प्रचार : ब्रह्मसत्तेला लागले जुलाब - भाग ३

मित्रहो

देवयानी प्रकरणात राष्ट्रीय म्हणवल्या जाणा-या मेडीयाने आता जी भूमिका घेतली आहे त्यावरून त्याला ब्राह्मणी मेडीया असं का म्हटलं जातं हे लक्षात येईल. त्यांच्या या घटनेतील भूमिकेचं विश्लेषण आपण अतिशय कठोर पद्धतीने करणार आहोत. वाचकांनी आपली मतं कळवावीत हे नम्र आवाहन करीत आहोत. सुनील खोब्रागडे यांच्याच शब्दात वस्तुस्थिती जाणून घ्यावी ही नम्र विनंती.
धन्यवाद.

Status Update
By Sunil Khobragade
ज्याना फक्त दोष शोधायचे आहेत त्यांना आपल्या डोळ्यातील मुसळ दिसत नाही पण दुसऱ्याच्या डोळ्यातील कुसळ मात्र दिसते असा प्रकार देवयानी खोब्रागडेच्या बाबतीत जातकिड्यांनी चालविला आहे. दुसऱ्यांनी पैसे खर्च करून सुरु केलेल्या वर्तमान पत्रात पोटार्थी पत्रकार म्हणून काम करणारे लोक आपल्या जातभाईच्या रक्षणासाठी " आयजी च्या जीवावर बायजी उदार " या थाटात वस्तुस्थितीची मोडतोड करतात याचे हे उत्कृष्ट उदाहरण आहे. देवयानी यांची यूएनमधली एकदा जबाबदारी संपली तर त्यांना राजदुत म्हणून असलेली सुटही संपेल आणि मग त्यांना कुठल्याही क्षणी अटक होऊ शकेल मगच साऱ्या ब्रह्मसमन्धाना शांती लाभेल अश्या दिवास्वप्नात असणाऱ्या या जातकिड्यांची कीव करावी तेवढी थोडी आहे.कदाचित तोपर्यंत देवयानी यांची पदोन्नती होऊन त्या दुसऱ्या देशात राजदूत म्हणून जाऊ शकतील किवा त्यांच्यावरील खटल्यातून निर्दोषही सुटू शकतील.त्यांचे पती आकाश सिंघ राठोड वाईन चे तज्ज्ञ आहेत हा त्यांचा गुन्हा आहे काय ? ते जगातील 18 भाषांचे जाणकार आहेत,इंग्रजी आणि जर्मन भाषेत पारंगत आहेत,तत्वज्ञानाचे डॉक्टरेट आहेत,जगातील उत्कृष्ट वाईन तज्ज्ञ आहेत.. भारतीय, अफगाण आणि इराणी वाईन्स चे जगातील ते एकमेव तज्ज्ञ आहेत.फिलाडेल्फिया विद्यापीठात ते वाइन मेकिंग व मार्केटिंग विषय शिकवितात.त्यांचे The Complete Indian Wine Guide हे जगप्रसिद्ध पुस्तक वाइन या विषयावरील सर्वोत्कृष्ट अधिकृत ग्रंथ समजला जातो.भारत सरकारने त्यांना वाईन उद्योगाचे सल्लागार म्हणून नेमले आहे या त्यांच्या गुणवत्तेबद्दल अभिमान वाटावयास हवा.पण त्यांनी एका बौद्ध मुलीशी लग्न केले यामुळे त्यांचे हे सर्व सद्गुण जातकिड्यांना दुर्गुण वाटतात.अन्यथा त्यांनी रकानेच्या रकाने भरून याच आकाश सिंग चे कौतुक केले असते.देवयानीचा पती अमेरिकन नागरिक आहे म्हणून तिच्या अडचणीत वाढ होईल म्हणणारे ही शक्यता का लक्षात घेत नाहीत कि उद्या कदाचित आकाश सिंग राठोर भारतीय नागरिकत्वही स्विकारेल.देवयानी खोब्रागडे हिला जर्मन भाषा मिळावी म्हणून उत्तम खोब्रागडेंनी राजकीय संबंध वापरल्याचा आरोप करनारे आणि महावीर सिंघवी याला डावलले म्हणनारे हे दडवून ठेवतात कि महावीर सिंघवी याने आपल्या वर्गमैत्रीण मुलीशी लग्नाचे आमिष दाखवून प्रेमसंबंध प्रस्थापित केले होते.IFS झाल्यानंतर मोठा हुंडा घेऊन दुसऱ्या मुलीशी त्याने लग्न जोडले.याविरोधात मुलीची आई नरेंदर कौर चढ्ढा हिने महावीर संघविनी आपल्या मुलीचे लैंगिक शोषण व फसवणूक केल्याची तक्रार केली.याविरुद्ध तत्कालीन परराष्ट्र मंत्री जसवंत सिंघ (भाजप )यांनी चौकशी करून महावीर संघवी याला 13 .6 . 2002 रोजी नोकरीतून काढून टाकले. याविरुद्ध त्याने CAT मध्ये तक्रार केली.CAT ने सरकारचे आदेश ग्राह्य ठरविले याविरोधात संघवी ने दिल्ली उच्च न्यायालयात अपील केले.उच्च न्यायालयाने 2008 मध्ये संघाविच्या बाजूने निर्णय दिला.याविरोधात केंद्र सरकार सर्वोच्च न्यालयात गेले.सर्वोच्च न्यायालयाने संघविच्या बाजूने निर्णय दिला.या खटल्यात संघवी च्या विरोधात तक्रार करणाऱ्या महिलेची तक्रार सिद्ध झाली नाही आणि संघवी च्या विरोधात नियमानुसार चौकशी करण्यात आली नाही या कारणास्तव न्यायालयाने संघवीला नोकरीतून काढून टाकण्याचे आदेश रद्द केले आहेत.IFS cadre साठी कोणती विदेशी भाषा कशी allot करावी याचे कोणतेही लिखित नियम त्यावेळी नव्हते.आवश्यकता व तत्कालीन स्थिती पाहून याचा निर्णय परराष्ट्र मंत्रालयातील संबंधित अधिकारी मंत्र्याच्या मंजुरीने घेत असत.त्यावेळचा अप्पर मुख्य सचिव P.L. Goyal याने त्यानुसार निर्णय घेतला.त्याला जर्मन भाषा घेण्यास डावलण्यात आले यासाठी तो न्यायालयात गेला नव्हता तर त्याला लैंगिक शोषण आणि लग्नाचे आमिष देवून फसवणूक हा आरोप खोडून काढण्यासाठी त्यांनी उपस्थित केलेल्या बचावाच्या अनेक मुद्द्यापैकी एक मुद्दा होता.केवळ हाच मुद्दा ग्राह्य धरून यावर सर्वोच्च न्यायालयाने निर्णय दिलेला नव्हता.उत्तम खोब्रागडेंनी राजकीय संबंध वापरून महावीर सिंघवी याला जर्मन भाषा घेण्यापासून डावलले म्हणनारानी हे लक्षात घ्यावे कि त्यावेळी केंद्रात भाजप चे सरकार होते व जसवंत सिंग परराष्ट्र मंत्री होते. महाराष्ट्रात सेना-भाजप चे सरकार होते.या सरकारने उत्तम खोब्रागडे यांनी अमिताभ बच्चन यांना दोन कोटी रुपयाच्या दंडाची शिक्षा दिली या कारणास्तव सजा म्हणून MAFCO या बंद पडलेल्या महामंडळाचे MD म्हणून बदली केली होती.त्यावेळी त्यांचा दर्जा उपसचिव असा होता.सुज्ञानी हा विचार करावा कि एक उपसचिव दर्जाचा दलित अधिकारी भाजपच्या शासन काळात केंद्राच्या अप्पर मुख्य सचिव म्हणजेच राज्याच्या मुख्य सचिव दर्जाच्या अधिकार्यावर आणि जसवंत सिंघ सारख्या परराष्ट्र मंत्र्यावर दबाव आणू शकतो काय? उत्तम खोब्रागडे आणि देवयानी खोब्रागडे हे बौद्ध अधिकारी असल्यामुळे जातकिड्यांनी योजनाबद्ध रीतीने त्यांची प्रतिमा मलिन करण्याचे कारस्थान चालविले आहे हे सुद्न्य भारतीयांनी लक्षात घ्यावे.

Ref : -
http://www.indianexpress.com/news/govt-told-to-reinstate-sacked-ifs-officer/656709/

http://www.indiankanoon.org/doc/1494941/

https://www.facebook.com/sunil.khobragade1/posts/10202195588945195?comment_id=6767660&notif_t=like